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बी.एड. सेमेस्टर-3 प्रश्नपत्र-2 - निर्देशन एवं परामर्श

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2709
आईएसबीएन :0

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बी.एड. सेमेस्टर-3 प्रश्नपत्र-2 - निर्देशन एवं परामर्श

अध्याय - 2

निर्देशन के प्रकार : शैक्षिक, व्यावसायिक तथा व्यक्तिगत

(Types of Guidance: Educational, Vocational and Personal)

 

प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं? शैक्षिक निर्देशन की आवश्यकता की विवेचना कीजिए।

उत्तर -

शैक्षिक निर्देशन का अर्थ एवं परिभाषाएँ

शिक्षा के क्षेत्र में अपव्यय तथा अवरोधन बहुत है। परीक्षाओं में असफल रहने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है।

विभिन्न रुचियों, प्रतिभाओं और क्षमताओं को धारण करने वाले विद्यार्थियों का योग्य विकास नहीं हो रहा। विद्यालय तथा जीवन में सामंजस्य प्राप्त करने में विद्यार्थियों को कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। ऐसी स्थिति में शैक्षिक निर्देशन का महत्त्व बढ़ रहा है। अधिकतर 'शैक्षिक निर्देशन' का अर्थ 'निर्देशन के रूप में शिक्षा' से लगाया जाता है लेकिन यह उचित नहीं है। वास्तव में शैक्षिक निर्देशन का सम्बन्ध मुख्य रूप से शिक्षा की इस प्रकार की समस्या से है जिन्हें छात्र अपने व्यावसायिक तैयारी के सिलसिले में विभिन्न व्यवसायों के अध्ययन में महसूस करते हैं। विभिन्न विद्वानों ने शैक्षिक निर्देशन को व्यापक रूप में माना है। ब्रेबर महोदय ने तो निर्देशन का इतना व्यापक अर्थ लिया है कि शिक्षा और शैक्षिक निर्देशन में अन्तर करना कठिन हो जाता है। सरल शब्दों में हम कह सकते हैं कि शिक्षा के क्षेत्र में अपनाए गए निर्देशन के कार्यक्रम को ही शैक्षिक निर्देशन कहा जाता है। शैक्षिक निर्देशन का कार्य छात्रों को पाठ्य विषयों को चुनने, शिक्षा में सफलता प्रदान करने और शिक्षा प्राप्त करते समय उत्पन्न होने वाली समस्याओं का समाधान करना है। इसके अतिरिक्त आज के इस जटिल और प्रतिस्पर्द्धात्मक युग में विद्यार्थी को अपने अध्ययन काल में ही अनेक प्रकार की शैक्षिक वातावरण से सम्बन्धित समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन समसस्याओं का समाधान शैक्षिक निर्देशन के द्वारा किया जाता है। शैक्षिक निर्देशन का सम्बन्ध विद्यार्थी और विद्यालय जगत से होता है। ऐसा निर्देशन विद्यार्थी की रुचियों, क्षमताओं, कुशलताओं एवं योग्यताओं का पता लगाकर उनके व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास कराने में सहायक होता है। भिन्न-भिन्न विद्वानों और शिक्षा शास्त्रियों ने शैक्षिक निर्देशन को भिन्न-भिन्न प्रकार से परिभाषित किया है। उनमें से कुछ प्रमुख विद्वानों द्वारा दी गई परिभाषाएँ इस प्रकार हैं-

(1) ब्रेवर के अनुसार, "शैक्षिक निर्देशन की परिभाषा व्यक्ति के मानसिक विकास में सहायता देने के लिए सचेत प्रयास के रूप से दी जा सकती है। कोई भी बात जिसका सम्बन्ध सीखने या शिक्षा से हो, शैक्षिक निर्देशन शब्द के अन्तर्गत है।"
(2) मैन्युअल ऑफ एजूकेशन एण्ड वोकेशनल गाइडेन्स के अनुसार, शैक्षिक निर्देशन का सम्बन्ध उस सहायता से है जो छात्रों को उनके विद्यालय, पाठ्यक्रम विषयों के चुनावों और समायोजनों एवं उनकी शैक्षि उपलब्धियों के बारे में दी जाती है। फि
(3) ट्रैक्सलर का विचार है कि, "शैक्षिक निर्देशन का सम्बन्ध स्कूल के प्रत्येक पहलू से है। जैसे कि पाठ्यक्रम, शिक्षण विधियाँ, पढ़ाई के निरीक्षण, अनुशासन विधियाँ, उपस्थिति, योजनाबद्धता की समस्याएँ, पाठ्य-अतिरिक्त क्रियाएँ, स्वास्थ्य तथा शारीरिक योग्यता कार्यक्रम तथा घर और समुदाय इत्यादि।"
(4) रूथ स्ट्रैंग के शब्दों में, "व्यक्ति को शैक्षिक निर्देशन प्रदान करने का मुख्य उद्देश्य समुचित कार्यक्रम के चुनाव तथा उसमें प्रगति करने में सहायता देना है।"

शैक्षिक निर्देशन की आवश्यकता

शिक्षा के क्षेत्र में आजकल बहुत अधिक परिवर्तन हो रहे हैं। शिक्षा के उद्देश्य समाज और व्यक्ति की आवश्यकतानुसार निर्धारित किये जाते हैं। आज की शिक्षा प्रणाली के अन्तर्गत छात्रों की बौद्धिक योग्यता और क्षमता की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता है। छात्रों को उनकी रुचि, अभिरुचि और योग्यता के अनुसार शिक्षा नहीं दी जाती, जिसके परिणामस्वरूप छात्रों का समय, उनका धन और उनकी शक्ति का अपव्यय होता है और जिसके कारण वे अपने जीवन में इच्छानुसार सफलता प्राप्त नहीं कर पाते। इस अपव्यय और असफलता को शैक्षिक निर्देशन की सहायता से काफी सीमा तक कम किया जा सकता है। शैक्षिक निर्देशन की आवश्यकता किसी एक कारण से नहीं बल्कि विभिन्न कारणों से अनुभव होती है। इसके कुछ महत्त्वपूर्ण कारण निम्नलिखित हैं-

(i) विद्यालयों में उचित समायोजन के लिए - शैक्षिक समायोजन छात्र को किसी भी क्षेत्र में वांछनीय प्रगति के लिए आवश्यक है। बहुत से विद्यार्थी विद्यालय में दाखिला लेने के पश्चात् वहाँ के वातावरण के साथ उचित समायोजन नहीं कर पाते हैं जिसके कारण या तो वे विद्यालय छोड़ देते हैं अथवा असफल हो जाते हैं। शैक्षिक निर्देशन की सहायता से छात्रों को नए विद्यालयों में भली-भांति समायोजित किया जा सकता है।

(ii) आगामी शिक्षा से सम्बन्धित जानकारी के लिए - स्कूल की शिक्षा समाप्त करने के पश्चात् अथवा कॉलेज की शिक्षा समाप्त करने के पश्चात् छात्रों के लिए यह निर्णय करना कठिन हो जाता है कि 'उनकी आगे की शिक्षा कैसी होनी चाहिए, अर्थात् वे कौन-से व्यावसायिक विद्यालय में, औद्योगिक' विद्यालय में या व्यापारिक विद्यालय में अध्ययन करें। अग्रिम भविष्य के सम्बन्ध में तथा उचित शिक्षा के सम्बन्ध में निर्णय लेने के लिए शैक्षिक निर्देशन की अत्यन्त आवश्यकता होती है।

(iii) पिछड़े बालकों तथा प्रतिभाशाली बालकों की समस्याओं को दूर करने के लिए - प्रत्येक विद्यालय में कुछ ऐसे बालक होते हैं जो अन्य बच्चों की अपेक्षा शिक्षा में पिछड़ जाते हैं। ऐसे बालकों के लिए शिक्षा विधि में संशोधन करना, रुचिकर पाठ्यक्रमों का चुनाव और उनके लिए उचित श्रव्यसाधनों का प्रबन्ध निर्देशन के द्वारा ही सम्भव है। इसके अतिरिक्त प्रत्येक विद्यालय में कुछ बालक अन्य बालकों की तुलना में अधिक प्रतिभाशाली और कुशाग्र बुद्धि के होते हैं जो कि सामान्य पाठ्यक्रम, सामान्य ज्ञान और सामान्य शिक्षण विधियों से संतुष्ट नहीं हो पाते हैं। ऐसे बालकों को निर्देशन के द्वारा ऐसी सुविधाएँ प्रदान की जा सकती है जिससे वे. बौद्धिक क्षमता के अनुसार शिक्षा प्राप्त कर सकें।

(iv) नौकरियों के अवसरों की जानकारी के लिए - आजकल विभिन्न व्यवसायों में जटिलता निरन्तर बढ़ती जा रही है। छात्रों को उनकी रुचि, क्षमताओं और योग्यता के अनुसार व्यवसाय का चुनाव न कर पाने के कारण वे अपने व्यवसाय में अपने आपको पूर्णतः समायोजित नहीं कर पाते। दूसरे, बेरोजगारी की समस्या का मुख्य कारण पाठ्यक्रम का उचित चुनाव न कर पाना, बिना सोचे- समझे उच्च शिक्षा प्राप्त करते रहना तथा विभिन्न व्यवसायों की उचित जानकारी न होना है। इन सभी समस्याओं को दूर करने के लिए निर्देशन आवश्यक है।

(v) पाठ्यविषयों का चुनाव करने के लिए - वर्तमान समय में विज्ञान, कला, वाणिज्य, तकनीकी, कम्प्यूटर और व्यावसायिक क्षेत्रों से सम्बन्धित विभिन्न विषय छात्रों को पढ़ाए जाते हैं। इन विभिन्न विषयों का चुनाव छात्रों की अपनी रुचियों, क्षमताओं और योग्यताओं के अनुसार होना चाहिए। छात्र विभिन्न विषयों का चुनाव करने में अपने आपको असफल अनुभव करते हैं इसलिए उचित पाठ्य-विषयों के चुनाव के लिए निर्देशन की आवश्यकता है।

(vi) बाल अपराधियों की बढ़ती हुई संख्या के कारण - आज के जटिल समाज में बाल- अपराधों की संख्या में निरन्तर बढ़ोत्तरी होती जा रही है। यदि बालकों को उचित समय पर सही निर्देशन देकर दूषित वातावरण से अलग कर दिया जाए तो अनेक प्रकार के अपराधों से बालकों को 'बचाया जा सकता है। यही कारण है कि हमारे देश में समयोचित निर्देशन पर अधिक बल दिया जा रहा है। अतः बालकों द्वारा किए जाने वाले विभिन्न अपराधों को रोकने के लिए और उन बालकों का सही मार्गदर्शन करने के लिए निर्देशन की आवश्यकता है।

(vii) विद्यालय व्यवस्था, शिक्षण - विधि तथा पाठ्क्रम में परिवर्तन के कारण - आजकल समाज और विद्यालय में काफी घनिष्ठ सम्बन्ध है। पहले की शिक्षा में अध्यापक क्रियाशील रहता था। परन्तु आज के युग में अध्यापन में बालक को अधिक प्रधानता दी जाती है। इसके अतिरिक्त पहले शिक्षा सभी छात्रों को एक समान मानकर दी जाती थी, परन्तु आज छात्रों की शिक्षा उनकी योग्यता, रुचि और क्षमता के आधार पर दी जाती है। अतः परिवर्तनशील विद्यालय व्यवस्था, शिक्षण-विधि और पाठ्यक्रम की ओर उचित ध्यान देने की नितान्त आवश्यकता है। शैक्षिक निर्देशन की सहायता से परिवर्तन के कारण उत्पन्न होने वाली समस्याओं का हल सरलतापूर्वक किया जा सकता है।

(viii) विद्यार्थियों की संख्या में निरन्तर वृद्धि - वर्तमान समय में शिक्षा के सभी स्तरों पर विद्यार्थियों की संख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही है जिसके कारण इस वृद्धि को ध्यान में रखते हुए एवं सामाजिक व्यवस्था के अनुसार उनकी शिक्षा व्यवस्था को सुव्यवस्थित करने के लिए निर्देशन एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

(ix) विद्यालय-व्यवस्था, शिक्षण विधि तथा पाठ्यक्रम में परिवर्तन के कारण - आज के युग में शिक्षा के क्षेत्र में तेजी से परिवर्तन हो रहे हैं। अभिभावक बच्चों की योग्यताओं और क्षमताओं पर ध्यान दिए बिना अंग्रेजी माध्यम विद्यालय में प्रवेश दिलाने के लिए उत्सुक हैं। इसक अतिरिक्त बच्चों को कक्षा में अच्छी से अच्छी स्थिति लाने के लिए अनावश्यक दबाव डाला जा रहा है और बच्चों को पढ़ाए जाने वाले पाठ्यक्रमों में तेजी से परिवर्तन हो रहा है। अतः परिवर्तनशील विद्यालय-व्यवस्था, शिक्षण विधि और पाठ्यक्रम की ओर उचित ध्यान देने की आवश्यकता निरन्तर महसूस हो रही है। शैक्षिक निर्देशन की सहायता से परिवर्तन के कारण उत्पन्न होने वाली समस्याओं का हल सरलतापूर्वक किया जा सकता है।

(x) विद्यार्थियों की स्कूल और कॉलेजों से सम्बन्धित समस्याओं को हल करने के लिए - विद्यार्थियों को स्कूल और कॉलेज से सम्बन्धित विभिन्न प्रकार की समस्याओं जैसे- पुस्तकों का चुनाव करने, पाठ्यक्रम सम्बन्धी क्रियाओं का चयन करने, पढ़ाई में मन को एकाग्र करने, सामाजिक सम्बन्धों को कायम रखने, शिक्षा में सन्तोषजनक उन्नति तथा समायोजन प्राप्त करने तथा पढ़ने की आदतों का विकास करने आदि का सामना करना पड़ता है। जिसके कारण ये विद्यार्थी शिक्षा के क्षेत्र में वांछित सफलता प्राप्त नहीं कर पाते हैं। इन सभी प्रकार की विद्यार्थियों की समस्याओं को निर्देशन की सहायता से हल नहीं किया जा सकता है।

(xi) व्यक्तिगत विभिन्नताएँ - कोई दो बालक एक जैसे नहीं होते, उनमें अनेक प्रकार की शारीरिक, मानसिक तथा भावात्मक भिन्नताएँ पाई जाती हैं। उनको उचित पाठ्यक्रम चुनने में सहायता देने के लिए शैक्षिक निर्देशन अत्यन्त आवश्यक है।

(xii) पाठ्य-सहायक क्रियाओं को संगठित करना - विद्यालय में पाठ्य-सहायक गतिविधियों को संगठित करने के लिए शैक्षिक निर्देशन आवश्यक है। सह-पाठ्यगामी क्रियाएँ शिक्षा में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं। इन क्रियाओं के माध्यम से बालकों की विभिन्न प्रतिभाओं का विकास किया जाता है। इन क्रियाओं के उचित संगठन में शैक्षिक निर्देशन का बहुत योगदान है।

(xiii) अपव्यय व अवरोधन को दूर करने के लिए - भारतवर्ष में प्रत्येक वर्ष लाखों छात्र स्थायी शिक्षा को प्राप्त किए बिना ही विद्यालय छोड़ देते हैं जिससे सरकार को काफी नुकसान उठाना पड़ता है। इसके साथ-साथ हमारे देश में अनुत्तीर्ण होने वाले छात्रों की संख्या भी दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इस अवरोधन के कारण समय, धन तथा शक्ति का अपव्यय हो रहा है। अतः इस अपव्यय और अवरोधन को दूर करने के लिए छात्रों को उचित निर्देशन की आवश्यकता है।

(xiv) अनुशासनहीनता की समस्या को नियन्त्रित करने के लिए - आजकल विद्यालयों और महाविद्यालयों के छात्रों में अनुशासनहीनता की समस्या दिन-प्रतिदिन तेजी से बढ़ती जा रही है। छोटी- छोटी बातों के लिए हड़ताल करना और सार्वजनिक सम्पत्ति की तोड़-फोड़ करना तथा अध्यापकों का अनादर करना एक साधारण बात हो गई है। इसका मुख्य कारण है वर्तमान शिक्षा छात्रों की आवश्यकताओं को संतुष्ट करने में असफल है। अनुशासनहीनता की इन सभी समस्याओं को दूर करने के लिए निर्देशन की आवश्यकता है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- निर्देशन का क्या अर्थ है? निर्देशन की प्रमुख विशेषताओं तथा क्षेत्र पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- निर्देशन के महत्वपूर्ण उद्देश्य कौन-कौन से हैं? विवेचना कीजिए।
  3. प्रश्न- निर्देशन के मूल सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  4. प्रश्न- निर्देशन की आवश्यकता से आप क्या समझते हैं? शैक्षिक एवं सामाजिक दृष्टिकोण से निर्देशन की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
  5. प्रश्न- "व्यावसायिक निर्देशन शैक्षिक निर्देशन पर प्रभुत्व रखता है।" स्पष्ट कीजिये एवं इस कथन का औचित्य बताइये।
  6. प्रश्न- निर्देशन के प्रमुख सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
  7. प्रश्न- निर्देशन की आधुनिक प्रवृत्तियाँ क्या हैं?
  8. प्रश्न- निर्देशन की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  9. प्रश्न- निर्देशन के विषय क्षेत्र पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  10. प्रश्न- निर्देशन तथा शिक्षा में कौन-कौन से मुख्य अन्तर हैं? स्पष्ट कीजिए।
  11. प्रश्न- निर्देशन के कार्य क्या हैं?
  12. प्रश्न- निर्देशन की प्रकृति का उल्लेख कीजिए।
  13. प्रश्न- भारत में निदर्शन की समस्याओं पर प्रकाश डालिए।
  14. प्रश्न- "समृद्ध भारत के लिये निर्देशन सेवाओं की अत्यधिक आवश्यकता है।" विभिन्न परिप्रेक्ष्य में इस कथन की विवेचना कीजिए।
  15. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श के मध्य सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
  16. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं? शैक्षिक निर्देशन की आवश्यकता की विवेचना कीजिए।
  17. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन के मुख्य उद्देश्यों तथा शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर शैक्षिक निर्देशन के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर शैक्षिक निर्देशन के स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
  19. प्रश्न- व्यक्तिगत निर्देशन किसे कहते हैं? व्यक्तिगत निर्देशन के स्वरूप एवं महत्त्व का वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर व्यक्तिगत निर्देशन के उद्देश्यों या कार्यों का वर्णन कीजिए।
  21. प्रश्न- व्यावसायिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं? इसके महत्त्व और आवश्यकता को स्पष्ट कीजिए।
  22. प्रश्न- छात्रों के व्यावसायिक निर्देशन में विद्यालय क्या भूमिका निभा सकता है?
  23. प्रश्न- "व्यक्तिगत निर्देशन, निर्देशन का मूलाधार है।" इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  24. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  25. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन के प्रमुख सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
  26. प्रश्न- शैक्षिक और व्यावसायिक निर्देशन में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए।
  27. प्रश्न- व्यावसायिक निर्देशन की शिक्षा के क्षेत्र में क्यों आवश्यकता है? स्पष्ट कीजिए।
  28. प्रश्न- व्यक्तिगत निर्देशन किसे कहते हैं? इसके मुख्य उद्देश्य बताइए।
  29. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन के सिद्धान्त क्या है स्पष्ट कीजिए।
  30. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं? इसकी उपयोगिता का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  31. प्रश्न- सूचना सेवा से आप क्या समझते हैं? सूचना सेवाओं के उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
  32. प्रश्न- सूचना सेवा की कार्य विधि का वर्णन कीजिए।
  33. प्रश्न- नियोजन सेवा से आप क्या समझते हैं? विद्यालय के नियोजन सम्बन्धी कार्यों एवं उत्तरदायित्वों पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- निर्देशन सेवाओं में कौन-कौन से कर्मचारी भाग लेते हैं? प्रधानाचार्य एवं अध्यापक की निर्देशन सम्बन्धी भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  35. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श में अभिभावक एवं वार्डेन की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- किसी विद्यालय के निर्देशन सेवा के संगठन की आधारभूत आवश्यकताओं का उल्लेख कीजिए।
  37. प्रश्न- निर्देशन सेवा में विद्यालय स्तर पर कार्यरत प्रमुख व्यक्तियों की भूमिका का विस्तारपूर्वक उल्लेख कीजिए।
  38. प्रश्न- अनुवर्ती सेवाओं से आप क्या समझते हैं? इसका क्या प्रयोजन है? अध्ययनरत छात्रों के लिए अनुवर्ती सेवाओं की विवेचना कीजिए।
  39. प्रश्न- छात्र सूचना या वैयक्तिक अनुसूची सेवा से आपका क्या अभिप्राय है? स्पष्ट कीजिए।
  40. प्रश्न- सूचना सेवा की आवश्यक सामग्री का उल्लेख कीजिए।
  41. प्रश्न- नियोजन सेवा के विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- परामर्श सेवा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  43. प्रश्न- सूचना सेवा कितने प्रकार की होती है? विवेचना कीजिए।
  44. प्रश्न- व्यावसायिक निर्देशन में आवश्यक सूचनाओं को बताइए।
  45. प्रश्न- व्यक्ति निर्देशन में आवश्यक सूचना को बताइये।
  46. प्रश्न- भारत में व्यवसाय से सम्बन्धित सूचनाओं के प्रमुख स्रोत क्या हैं?
  47. प्रश्न- निर्देशन सेवाओं में परिवार की क्या भूमिका होती है?
  48. प्रश्न- अनुकूलन सेवा से आपका क्या अभिप्राय है? इसकी आवश्यकता के क्या कारण हैं? स्पष्टतया समझाइये।
  49. प्रश्न- उपचारात्मक सेवाओं से आप क्या समझते हैं?
  50. प्रश्न- अनुवर्ती अध्ययन की समस्याएँ एवं समाधान का वर्णन कीजिए।
  51. प्रश्न- भूतपूर्व छात्रों का अनुवर्ती अध्ययन क्यों आवश्यक है? स्पष्ट कीजिए।
  52. प्रश्न- भूतपूर्व छात्रों के अनुवर्ती अध्ययन की विधियों का वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- कृत्य विश्लेषण एवं कृत्य संतोष में क्या सम्बन्ध है?
  54. प्रश्न- विद्यालयों में निर्देशन सेवाओं से आप क्या समझते हैं? विद्यालय निर्देशन- सेवाओं के संगठन के प्रचलित सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
  55. प्रश्न- माध्यमिक स्तर पर निर्देशन सेवाओं के संगठन का वर्णन कीजिए।
  56. प्रश्न- विद्यालय निर्देशन सेवा के प्रमुखं कार्य कौन-कौन से हैं? प्राथमिक तथा सैकेण्ड्री स्कूल स्तर पर निर्देशन कार्यक्रम संगठन के उद्देश्यों तथा कार्यों की विवेचना कीजिए।
  57. प्रश्न- विद्यालयी निर्देशन सेवाओं के संगठन की मुख्य संकल्पनाएँ क्या हैं? इसकी आवश्यकता व क्षेत्र क्या है? वर्णन कीजिए।
  58. प्रश्न- वर्णन कीजिए कि आप एक शिक्षक के रूप में माध्यमिक स्तर पर निर्देशन कार्यक्रम को किस प्रकार से संगठित करेंगे?
  59. प्रश्न- विद्यालय निर्देशन सेवा द्वारा किये जाने वाले मुख्य कार्यों की विवेचना कीजिए।
  60. प्रश्न- विद्यालय की निर्देशन संगठन सेवा का क्या अर्थ है? स्पष्ट कीजिए।
  61. प्रश्न- विद्यालय में निर्देशन सेवाओं के सफल संगठन के लिए किन-किन मुख्य बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है? स्पष्ट कीजिए।
  62. प्रश्न- विद्यालय में निर्देशन कार्यक्रमों के सफल संचालन हेतु किन-किन कर्मचारियों की आवश्यकता होती है? स्पष्ट कीजिए।
  63. प्रश्न- निर्देशन सेवाओं के विभिन्न रूपों तथा सिद्धान्तों को संक्षिप्त रूप में बताइए।
  64. प्रश्न- निर्देशन में मूल्यांकन के महत्व की विवेचना कीजिए।
  65. प्रश्न- निर्देशन में मूल्यांकन के सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
  66. प्रश्न- परामर्श क्या है? परामर्श के उद्देश्य तथा सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- परामर्श क्या है? परामर्श की आवश्यकता तथा महत्व का वर्णन कीजिए। अथवा छात्र परामर्श की आवश्यकता बताइये।
  68. प्रश्न- परामर्श की प्रक्रिया को समझाइए।
  69. प्रश्न- एक अच्छे परामर्शदाता के कार्यों का उल्लेख कीजिए।
  70. प्रश्न- परामर्श से आपका क्या अभिप्राय है? स्पष्ट कीजिए।
  71. प्रश्न- परामर्श और निर्देशन में कौन-कौन से मुख्य अन्तर पाए जाते हैं? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  72. प्रश्न- एक अच्छे परामर्शदाता में कौन-कौन से गुणों का होना आवश्यक है? स्पष्ट कीजिए।
  73. प्रश्न- परामर्श से सम्बन्धित प्रमुख परिभाषाओं को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
  74. प्रश्न- परामर्श के उद्देश्यों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  75. प्रश्न- "एक परामर्शदाता के लिये समूह गतिशीलता का ज्ञान होना आवश्यक है।" स्पष्ट कीजिए।
  76. प्रश्न- धर्म-परामर्श में सह-सम्बन्ध बताइये।
  77. प्रश्न- व्यक्तिवृत्त-अध्ययन विधि से आप क्या समझते हैं? इसके गुणों का वर्णन कीजिए।
  78. प्रश्न- संचित अभिलेख पत्र क्या है? संचित अभिलेख पत्र की विशेषताएँ कौन-कौन सी हैं? इस पत्र की उपयोगिता की व्याख्या कीजिए।
  79. प्रश्न- साक्षात्कार प्रविधि से आप क्या समझते हैं? साक्षात्कार प्रविधि के मुख्य तत्त्वों विशेषताओं एवं उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- निर्धारण मापनी या रेटिंग स्केल से आपका क्या अभिप्राय है? इनकी मुख्य विशेषताओं तथा प्रकारों की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  81. प्रश्न- साक्षात्कार प्रविधि के कितने प्रकार हैं? अनिर्देशित साक्षात्कार प्रविधि के लाभ एवं सीमाएँ बताइए।
  82. प्रश्न- संचित अभिलेख पत्र के निर्माण के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  83. प्रश्न- व्यक्तिवृत्त अध्ययन प्रविधि की सीमाओं का वर्णन कीजिए।
  84. प्रश्न- साक्षात्कार प्रविधि के गुणों का वर्णन कीजिए।
  85. प्रश्न- क्रम निर्धारण प्रविधि या निर्धारण मापनी को परिभाषित कीजिए।
  86. प्रश्न- साक्षात्कार विधि के मुख्य उपयोगों के बारे में संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- निरीक्षण या अवलोकन के अर्थ तथा परिभाषाओं को संक्षेप में स्पष्ट करें।
  88. प्रश्न- निरीक्षण या अवलोकन प्रविधि के दोषों पर प्रकाश डालिए।
  89. प्रश्न- प्रश्नावली प्रविधि के अर्थ तथा परिभाषाओं को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
  90. प्रश्न- क्रम निर्धारण प्रविधि की कमियों या सीमाओं पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  91. प्रश्न- संचयी आलेख का अर्थ बताइए।
  92. प्रश्न- परामर्श प्रदान करने की मुख्य प्रविधियाँ कौन-कौन सी हैं? निर्देशीय तथा अनिर्देशीय परामर्श की प्रविधियों की मुख्य धारणाओं, सोपानों तथा लाभ एवं कमियों का उल्लेख कीजिए।
  93. प्रश्न- परामर्श की प्रमुख प्रविधियाँ कौन-कौन सी हैं? निर्देशन और परामर्श में साक्षात्कार प्रविधि क्यों अधिक उपयोगी सिद्ध हुई है? स्पष्ट कीजिए।
  94. प्रश्न- समन्वित परामर्श से आप क्या समझते हैं? समन्वित परामर्श की मुख्य धारणाओं, लाभों तथा कमियों एवं सीमाओं का वर्णन कीजिए।
  95. प्रश्न- परामर्श क्या है? परामर्श तथा निर्देशन में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए।
  96. प्रश्न- निर्देशन के साधन क्या हैं?
  97. प्रश्न- निर्देशात्मक परामर्श की प्रमुख विशेषताओं और सीमाओं पर प्रकाश डालिए।
  98. प्रश्न- अनिदेशात्मक परामर्श से क्या तात्पर्य है? अनिदेशात्मक परामर्श की मूल धारणाओं का उल्लेख कीजिए।
  99. प्रश्न- निर्देशीय तथा अनिर्देशीय परामर्श में कौन-कौन से मुख्य अन्तर पाए जाते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  100. प्रश्न- अनिर्देशीय परामर्श की विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
  101. प्रश्न- अनिर्देशीय परामर्श के मुख्य कार्यों को संक्षेप में बताएँ।
  102. प्रश्न- समन्वित परामर्श मुख्य चरणों या पदों को संक्षिप्त रूप में स्पष्ट कीजिए।
  103. प्रश्न- निर्देशीय परामर्श के मुख्य चरण या सोपान कौन-कौन से हैं? स्पष्ट कीजिए।
  104. प्रश्न- परामर्श के किसी एक उपागम का वर्णन कीजिए।
  105. प्रश्न- परामर्शदाता की विशेषताओं, गुणों तथा व्यावसायिक नीतिशास्त्र का वर्णन कीजिए।
  106. प्रश्न- परामर्शदाता की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
  107. प्रश्न- परामर्शदाता में किस प्रकार का अनुभव होना आवश्यक है, बताइये।
  108. प्रश्न- परामर्शदाता का प्रशिक्षण कार्यक्रम बताइये।
  109. प्रश्न- निर्देशन कार्यक्रम में परामर्शदाता की भूमिका क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  110. प्रश्न- परामर्शदाता के व्यक्तित्व सम्बन्धी विशेषकों का उल्लेख कीजिए।
  111. प्रश्न- क्रो एवं क्रो के अनुसार परामर्शदाताओं के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  112. प्रश्न- परामर्शार्थी और परामर्शदाता के पारस्परिक सम्बन्धों को स्पष्ट कीजिए।
  113. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श केन्द्रों की आवश्यकता बताइए तथा निर्देशन केन्द्रों के उद्देश्य भी बताइए।
  114. प्रश्न- भारत में निर्देशन एवं परामर्श की समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
  115. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श केन्द्रों के कार्य बताइए।
  116. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श केन्द्रों की समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
  117. प्रश्न- बुद्धि से आप क्या समझते हैं? बुद्धि के प्रकार, विशेषताएँ एवं सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  118. प्रश्न- बुद्धि के मापन से आप क्या समझते हैं? बुद्धि परीक्षणों के प्रकार का वर्जन करते हुए बुद्धिलब्धि को कैसे ज्ञात किया जाता है? स्पष्ट कीजिए।
  119. प्रश्न- शिक्षा और निर्देशन में बुद्धि परीक्षणों की उपयोगिता की विवेचना कीजिए।
  120. प्रश्न- रुचि क्या है? रुचि की महत्वपूर्ण विशेषताओं और प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  121. प्रश्न- अभिवृत्ति का क्या अर्थ है? अभिवृत्ति परीक्षण का वर्णन कीजिए।
  122. प्रश्न- 'रुचि आविष्कारिकाएँ' क्या मापन करती हैं? कम से कम दो रुचि आविष्कारिकाओं का नाम बताइए।
  123. प्रश्न- बुद्धि कितने प्रकार की होती है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  124. प्रश्न- बुद्धि की मुख्य विशेषताएँ कौन-कौन सी हैं? स्पष्ट कीजिए।
  125. प्रश्न- बुद्धि के अर्थ तथा स्वरूप पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  126. प्रश्न- रुचि का अर्थ एवं परिभाषा दीजिए।
  127. प्रश्न- रुचियों के मुख्य प्रकार कौन-कौन से हैं? संक्षेप में बताइये।
  128. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श में रुचि सूचियों के लाभ का वर्णन कीजिए।
  129. प्रश्न- रुचि-सूचियों की कमियां या दोषों का उल्लेख कीजिए।
  130. प्रश्न- अभिवृत्ति के वर्गीकरण का वर्णन कीजिए।
  131. प्रश्न- अभिवृत्ति से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  132. प्रश्न- भारतवर्ष में रुचि मापन के कार्यों पर प्रकाश डालिये।.
  133. प्रश्न- निर्देशन सेवाओं में कौन-कौन से कर्मचारी भाग लेते हैं? प्रधानाचार्य एवं अध्यापक की निर्देशन सम्बन्धी भूमिका की विवेचना कीजिए।
  134. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श में अभिभावक एवं वार्डेन की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  135. प्रश्न- विशिष्ट बालकों से क्या अभिप्राय है? उनकी क्या विशेषताएँ हैं? पिछड़े बालकों की शिक्षा एवं समायोजन के लिये निर्देशन व परामर्श का एक कार्यक्रम तैयार कीजिए।
  136. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श कर्मचारी वर्ग के रूप में प्रधानाचार्य की भूमिका की विवेचना कीजिए।
  137. प्रश्न- विशिष्ट बालकों को निर्देशन व परामर्श देते समय क्या सावधानियाँ रखी जानी चाहिये? वर्णन कीजिए।
  138. प्रश्न- चिकित्सा कर्मचारी किस प्रकार निर्देशन प्रक्रिया में योगदान देते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  139. प्रश्न- निर्देशन प्रक्रिया में शारीरिक शिक्षक के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  140. प्रश्न- निर्देशन कार्यक्रम में परामर्शदाता की भूमिका क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  141. प्रश्न- प्रधानाचार्य के निर्देशन सम्बन्धी उत्तरदायित्वों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  142. प्रश्न- निर्देशन में शिक्षक की भूमिका क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  143. प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र में मनोचिकित्सक की भूमिका बताइये।

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